हर घटना, हर स्थिति, हर व्यक्ति के व्यवहार से हमें सीखना चाहिए। हम अहंकार के कारण उनसे कुछ सीख नहीं पाते और स्वार्थ-पथ के अनुगामी बनकर रह जाते हैं। हमारा जन्म परमार्थ के लिए हुआ है। हमारे जीवन की सार्थकता तभी संभव है जब हम परमार्थ को अहमियत देंगे। यह भी सर्वविदित है कि अहंकार परमार्थ-पथ का सबसे बड़ा शत्रु है, यह जानते हुए भी हम स्वार्थमय जीवन जी रहे हैं। संप्रति ग्रामीण-परिवेश में परमार्थ का सर्वथा अभाव-सा दीख रहा है। हम कर्म-फल के वशीभूत हो सेवा से वंचित रह जाते हैं। हमें ज्ञात होना चाहिए कि जिस सेवा में कोई स्वार्थ न हो, छल न हो और किसी फल की कामना न हो वही सच्ची सेवा है तो आइए हम अहंकार तजकर आज ही सेवा का संकल्प लें ताकि हमारा जीवन सफल हो। माँ जगदंबे की आराधना भी अहंकार-रहित होनी चाहिए।
।। श्री परमात्मने नमः।।
Wednesday 4 April 2018
अहंकार
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