Tuesday 31 October 2017

कामवासना

कामवासना एक बड़ा प्राचीन अभ्यास है—सनातन—पुरातन! जन्मों— जन्मों में उसका अभ्यास किया है। कभी उससे कुछ पाया नहीं सदा खोया, सदा गंवाया लेकिन अभ्यास रोएँ—रोएँ में समा गया है। वह जो मोक्ष के लिए तैयार है और वह जो परम अद्वैत में अपनी आस्था की घोषणा कर चुका है। पुराने अभ्यास के कारण बार—बार विफल हो जाता है। मौत के क्षण तक आदमी कामवासना के सपनों से भरा होता है। ध्यान करने बैठता है तब भी कामवासना के विचार ही मन में दौड़ते रहते हैं। भीतर मन में सुन्दरियां ही भटका रही होती हैं।
।। श्री परमात्मने नमः।।

Monday 30 October 2017

नाम-जप

नाम जपन क्यों छोड़ दिया?

क्रोध न छोड़ा झूठ न छोड़ा
सत्य बचन क्यों छोड़ दिया?

झूठे जग में दिल ललचा कर
असल वतन क्यों छोड़ दिया?

कौड़ी को तो खूब सम्भाला
लाल रतन क्यों छोड़ दिया?

जिन सुमिरन से अति सुख पावे
तिन सुमिरन क्यों छोड़ दिया?

नाम जपन क्यों छोड़ दिया?

।। श्री परमात्मने नमः।।

परदोष

दूसरेके दोषोंका न प्रचार करो, न चर्चा करो और न उन्हें याद ही करो । तुम्हारा इसीमें परम लाभ है । भगवान् सर्वान्तर्यामी हैं, वे किसने किस परिस्थितिमें, किस नियतसे कब क्या किया है, सब जानते हैं, और वे ही उसके फलका भी विधान करते हैं । ‘तुम बीचमें पड़कर अपनी बुद्धिका दिवाला क्यों निकालने जाते हो, और झूठी-सच्ची कल्पना करके दोषोंको ही बटोरते हो ?’
(‘कल्याण’ पत्रिका;  वर्ष – ७८, संख्या – ११ : गीताप्रेस, गोरखपुर)

Saturday 28 October 2017

प्रेम

कुछ बोलने और तोड़ने में केवल एक पल लगता है जबकि बनाने और मनाने में पूरा जीवन लग जाता है। प्रेम सदा माफ़ी माँगना पसंद करता है और अहंकार सदा माफ़ी सुनना पसंद करता है।
।। श्री परमात्मने नमः ।।

Friday 27 October 2017

माँ भारती

मानव जीवन के आंगन में जब छाये कभी अंधेरा,
माँ भारती करेगी सवेरा......
जहाँ निंदा,हिंसा,घृणा भाव का पल-पल लगता फेरा,
माँ भारती करेगी सवेरा.......
यह जीवन है जहाँ सुख-दु:ख के बंधन में डाले माया,
यहाँ गुण-अवगुण और द्वेष भाव को जन-जन क्यों अपनाया?
माँ भारती नाम को भूल सभी रटता है मेरा-मेरा...माँ भारती .....
उनका आंगन सदा खुला, भारती नाम गाले,
सत्संगति,सुविद्या,संयम,प्रेम सभी अपनाले,
यहाँ धन-बल विद्या काम न आये,ना तेरा ना मेरा..माँ भारती ...
थोड़ा-सा अधिकार मिले तो अभिमानी बन जाता,
काम घिनौना करने लगता कुछ न समझ में आता,
गुलशन को वीरान करे नफरत जब डाले डेरा...
माँ भारती...
। ।श्री परमात्मने नमः ।।

Thursday 26 October 2017

याचना

मैं नकारात्मक लोगों से कुछ कहना चाहता हूँ वह यह कि तुमने कोशिश तो बहुत की फिर भी मैं टूटा नहीं या तो तुम पत्थर नहीं या फिर मैं ही आईना नहीं। मैं सकारात्मक लोगों के लिए परमपिता परमेश्वर से याचना करता हूँ कि उनका जीवन सदा मंगलमय रहे।
।।श्री परमात्मने नमः।।

Wednesday 25 October 2017

प्रार्थना

सद्बुद्धि दो हे भगवान !
न्यायोचित व्यवहार सिखा दो,
सद्बुद्धि दो हे भगवान !
इधर-उधर क्यों भटक रहे हैं ?
मुश्किल को कर दो आसान।
सबके हित के लिए जी सकें,
अर्पण कर तन, मन और प्राण।
कर्म करें निष्काम भाव से,
जन-हित पर हो मेरा ध्यान।
आत्म-निरीक्षण करूँ सर्वदा,
पद का कभी न हो अभिमान।
भोगपरायण जीवन तजकर,
करूँ मैं निशि-दिन जन-कल्याण।
सद्बुद्धि दो हे भगवान।
दिवाकर गोपालबाद,
सरमेरा (नालन्दा)

Tuesday 24 October 2017

छठ-व्रत

मित्रो नमस्कार!
उत्तर से उन्नति, दक्षिण से दायित्व, पूर्व से प्रतिष्ठा, पश्चिम से प्रारब्ध,नैऋत्य से नैतिकता, वायव्य से वैभव, ईशान से ऐश्र्वर्य, अग्नि से अतिक्रमण-रहित, आकाश से आमदनी और पाताल से पूंजी। दसों दिशाओं से शान्ति, सुख, समृद्धि और सफलता प्राप्त हो। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ छठ-व्रत की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।

Monday 23 October 2017

जीवन

अविरत अंकुर का कुंभलाना,जीवन का अंत हुआ  जानो.
अंकुर की सांसें  बंद हईं,ऊषा से शाम हुई मानो
अंकुर की सांसें बंद न हों,चेतना-लहर लानी होगी.
जिस स्थल पर अंकुर जन्मा,उसपर जल-कण लानी होगी.
जीवन का अंतिम निर्णय क्या, एकाध बार की हार-जीत,
करता जा श्रम मत चिंता कर, खुशियों के गाना तभी गीत.
ऊषा के मनोरम आभा ने, जीवन सौरभ प्रदान किया,
रज-कण पर जल-कण बरस पड़ीं,नव-अंकुर खुलकर सांस लिया.
स्वरचित

गांधीजी का सपना

  *बापू आपके द्वार*
अपनी गलती हो स्वीकार,
लें जीवन में इसे उतार।
नहीं किसी को हम मारेंगे,
खुद मरने को हों तैयार।
सिद्धांत-रहित राजनीति त्याग कर,
सदा सत्य की बहे बयार।
गांधीजी के सपनों को हम,
चलो करें मिलकर साकार।
विकसित बिहार के निश्चय सात,
जगमग हो संपूर्ण बिहार।

Sunday 22 October 2017

गुरु

जब चारों ओर अँधेरा हो तो गुरु का दीप जला लेना !
जब गमों ने तुमको घेरा हो तुम हाल गुरु को सुना देना !
जब दुनिया तुमसे मुँह मोड़े तुम अपने गुरु को मना लेना !
जब अपने तुमको ठुकरा दें गुरु दर को तुम अपना लेना !
जब कोई तुमको रुलाये तो तुम गुरु के गीत गुनगुना लेना !
गुरु करुणा का सागर है तुम उसमें डुबकी लगा लेना !
।। श्री परमात्मने नमः।।

Saturday 21 October 2017

भक्ति

अपने ऐबों और बुराइयों को देखते रहना चाहिए और अंतकाल की चिंता रखनी चाहिए, जिनमें ये दो गुण हों वही सच्चे फकीर हैं,यही साधुता है। ऐसा स्वभाव बन जाना ईश्वरीय अनुग्रह के लक्षण हैं। भक्त का काम यह है कि अत्याचारी और दुश्मन के लिए भी कभी बुरा विचार दिल में न लायें और न कभी भगवान से उसे दण्ड देने के लिए प्रार्थना करें ऐसा करते ही भक्ति खंडित हो जाती है और यह अपराध उसका लिख लिया जाता है।
।। श्री परमात्मने नमः।।

Friday 20 October 2017

दौलत

दुनिया का अजीब दस्तूर है....दौलत चाहे कितनी भी बेईमानी से घर आये पर उसकी पहरेदारी के लिए सबको ईमानदार शख्स ही चाहिए...!!
~दिवाकर प्रसाद, नालंदा
।। श्री परमात्मने नमः ।।

खामोशी

खामोशी और तन्हाई हमें प्यारी हो गई है,
आजकल रातों से हमें यारी हो गई है।
सारी-सारी रात तुम्हें याद करते हैं, मालिक!
शायद तुम्हें याद करने की बीमारी हो गई है।
।। श्री परमात्मने नमः ।।

Wednesday 18 October 2017

कौन

झाँक रहे हैं इधर उधर सब अपने अंदर झांके  कौन ?
ढूँढ रहे दुनियाँ में कमियां अपने मन में ताके कौन ?
दुनियाँ सुधरे सब चिल्लाते खुद को आज सुधारे कौन ?
पर उपदेश कुशल बहुतेरे खुद पर आज विचारे कौन ?
हम सुधरें तो जग सुधरेगा सीधी बात स्वीकारे कौन ?
घर-घर में सब दीप जलाते मन में दीप जलाते कौन?
।। श्री परमात्मने नमः ।।

Monday 16 October 2017

प्रकृति का स्वभाव

कुछ ऐसी अनेक घटनाएं हैं जो हम नहीं चाहते कि हों लेकिन वे घटित होती हैं। कुछ ऐसी चीजें हैं जो हम नहीं जानना चाहते लेकिन वह सीखनी पड़ती है तथा कुछ ऐसे लोग होते हैं जिनके बिना हम जिन्दा नहीं रहना चाहते लेकिन वह हमसे बिछुड़ जाते हैं। यह प्रकृति का स्वभाव है।
।। श्री परमात्मने नमः ।।

सेवा

नकारात्मक प्रवृत्ति के लोग ही समस्या जनक होते हैं क्योंकि वे खुद तो कुछ करते नहीं, सिर्फ दूसरों की आलोचना-निंदा करते रहते हैं और शिकायती लहज़े में पूछते हैं- "देश ने मेरे लिए क्या किया?" जबकि सकारात्मक प्रवृत्ति के लोगों के पास पर-निंदा के लिए फुर्सत ही नहीं होती क्योंकि वे हर वक्त देश और समाज की सेवा में मशगूल रहते हैं।
।। श्री परमात्मने नमः।।

Thursday 12 October 2017

प्रवृत्ति

नकारात्मक प्रवृत्ति के लोग ही समस्या जनक होते हैं क्योंकि वे खुद तो कुछ करते नहीं, सिर्फ दूसरों की आलोचना-निंदा करते रहते हैं और शिकायती लहज़े में पूछते हैं- "देश ने मेरे लिए क्या किया?" जबकि सकारात्मक प्रवृत्ति के लोगों के पास पर-निंदा के लिए फुर्सत ही नहीं होती क्योंकि वे हर वक्त देश और समाज की सेवा में मशगूल रहते हैं।
।। श्री परमात्मने नमः।।

किस्मत

किस्मत हमें कहाँ ले आई गुलशन से वीराने में,
आंसू भी नाकाम हो रहे दिल की आग बुझाने में।
वीराने में जलते-जलते एक ज़माना बीत गया,
अपना मुक्कद्दर बिगड़े हुए एक ज़माना बीत गया।
परिवार से हमको बिछड़े हुए एक जमाना बीत गया,
फिर भी परिवार तो अपना है लिखता हूँ मैं गीत नया।

Monday 9 October 2017

सद्बुद्धि

मैं जानता हूं कि इस धरा पर विभिन्न प्रकार के लोग हैं। विभिन्न प्रकार के उनकी सोच है इसलिए हे मेरे प्रभु! आपसे मेरा यही निवेदन है कि आप सबको सन्मति और सद्बुद्धि प्रदान करें...!!
।।श्री परमात्मने नमः ।।

Sunday 8 October 2017

समय

जीवन के इस भाग दौड़ में मनुष्य के पास समय का बड़ा ही अभाव है। यह हमसब समझ सकते हैं। अगर हमसब  अपने दिन भर के व्यस्ततम समय में से मात्र 2 मिनट प्रभु के भजन और सत्संग में ध्यान लगाते हैं तो मेरा विश्वास है कि हम सबका जीवन और दिन आनंदमय गुजरेगा।
।। श्री परमात्मने नमः।।

Thursday 5 October 2017

आदमी

यह शहर वह है कि जिसमें आदमी को देखकर,
आइना चेहरा बदलता है बताओ क्या करें?
।। श्री परमात्मने नमः ।।

Wednesday 4 October 2017

याद

तेरी याद न आए प्रभु तो फिर रात क्या हुई?
तेरा दर्द न आए तो फिर बात क्या हुई?
पलकों में अभी अश्क भी आए नहीं अगर
तो फिर हे प्रभु! तेरे ख्यालों से मुलाकात क्या हुई?
।। श्री परमात्मने नमः ।।

Monday 2 October 2017

सच्चा साथी

हमें अपनी प्राथमिकता की ओर ही ध्यान देना चाहिए। हम अपने आप से सवाल करें, हमारा उद्देश्य क्या है ? हमारा फोकस क्या है ? हमारा विश्वास, हमारी आशा कहाँ है? ऐसे ही मझधार मे फंसने पर हमें अपने इश्वर को याद करना चाहिए। उस पर विश्वास करना चाहिए जो कि हमारे हृदय में ही बसा हुआ है। जो हमारा सच्चा रखवाला और साथी है।
।। श्री परमात्मने नमः।।

प्रभु मिलन

चाहे कोई कितना भी यज्ञ करे, कितना भी अनुष्ठान करे, कितना भी दान करे, कितनी भी भक्ति करे लेकिन जब तक मन में प्राणी मात्र के लिए प्रेम नहीं होगा, प्रभु से मिलन हो ही नहीं सकता।
।। श्री परमात्मने नमः।।