संप्रति गाँव में जनमानस देखने योग्य है। जन-प्रतिनिधियों मेंं तो अर्थ-लूट की भावना चरमसीमा पर है। मनरेगा को तो लोग सबसे छोटी इकाई से लेकर सबसे बड़ी इकाई तक जितने कर्मचारी या पदाधिकारी हैं, खोखला समाज समझकर अपनी-अपनी रोटियां सेंकने में लगे हैं। अभीतक तो खोटे सिक्के (खोटे जनप्रतिनिधि) ही बाजार में चल रहे हैं।
ग्रामीण-परिवेश में जाकर देखें कौन बडा कौन छोटा है?
कौन-सा सिक्का चल रहा और कौन-सा सिक्का खोटा है?
भारत हूं मैं, ये देश बचालो यारों! किसी नज़र को तेरा इंतजार आज भी है। इसी असमंजस में किसी भूले की खोज में एक शायर ने लिखा है-->
क्या बनाया देश का इतिहास तुमने
दूर तक पग चिह्न यदि छोड़े नहीं हैं?
दागकर नारे हवा में हाँकना मत
हम सजग इंसान हैं, घोड़े नहीं हैं ?
।। श्री परमात्मने नमः।।
Friday 13 April 2018
असमंजस
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