अपने ऐबों और बुराइयों को देखते रहना और अंतकाल की चिंता रखना,जिनमें ये दो गुण हों वही सच्चे फकीर हैं,यही साधुता है। ऐसा स्वभाव बन जाना ईश्वरीय अनुग्रह के लक्षण हैं। भक्त का काम यह है कि अत्याचारी और दुश्मन के लिए भी कभी बुरा विचार दिल में न लाये और न कभी भगवान से उसे दण्ड देने के लिए प्रार्थना करे ऐसा करते ही भक्ति खंडित हो जाती है और यह अपराध उसका लिख लिया जाता है।
ग्रामीण-परिवेश में आजकल अपनी गलतियों, ऐबों और बुराइयों को कोई नहीं देखता है चाहे हम ही क्यों न हों! यही कारण है कि हम ईश्वरीय अनुग्रह से वंचित रह जाते हैं।
।। श्री परमात्मने नमः।।
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