Wednesday 30 November 2016

बच्चे की आंखें

अगर बूढ़ा आदमी बच्चे की आंखों से दुनिया को देख सके, तो उसकी जिंदगी में जैसी शांति और जैसा आनंद और जैसे ब्लिस की वर्षा हो जाती है, उसका अनुमान लगाना मुश्किल है।

Tuesday 29 November 2016

प्रेम का रहस्य

संसार में यदि प्रेम करना है तो भगवान से ही प्रेम करना चाहिये; क्योंकि भगवान ही प्रेम के सर्वस्व हैं, यानि प्रेम का तत्त्व-रहस्य जानने वाले भगवान ही हैं। सारी दुनिया का प्रेम इकट्ठा कर लें तो भगवत्प्रेम के एक अंश का भी अंश नहीं हो सकता। भगवान प्रेम का जितना मूल्य चुकाते हैं, उतना कोई भी नही चुकाता।भगवान प्रेम से खरीदे जाते हैं। सारे संसार से प्रेम हटाकर - प्रेम बटोरकर, केवल भगवान से ही प्रेम करना चाहिये।

Monday 28 November 2016

वस्तु का आदान-प्रदान

दूसरेकी प्रसन्नतासे मिली हुई वस्तु दूधके समान है, माँगकर ली हुई वस्तु पानीके समान है और दूसरेका दिल दुःखाकर ली हुई वस्तु रक्तके समान है।
।।श्री परमात्मने नम:।।

Sunday 27 November 2016

अभिवादन

उत्कृष्ट आचरण वाले मानव का ही चरण-स्पर्श द्वारा अभिवादन उपयुक्त है क्योंकि स्पर्श से तन-मन पर असर पड़ता है।
।।श्री परमात्मने नम:।।

Saturday 26 November 2016

स्मृति

अंतर्मुखी बन हम जितना अपने स्मृति को पक्का करते जायेंगे उतना ही यह स्मृति आत्मा को लाइट और माइट स्थिति में स्थित कर देगी।
।।श्री परमात्मने नम:।।

Friday 25 November 2016

सफल जीवन

इस परिवर्तनशील संसार में हमें शाश्वत आनंद प्राप्त करने के लिए परमानंद को पकड़ना होगा तभी जीवन सफल होगा.
।।श्री परमात्मने नम:।।

Thursday 24 November 2016

कामना और आवश्यकता

मनुष्य अनन्तकालतक जन्मता-मरता रहे तो भी उसकी आवश्यकता मिटेगी नहीं और कामना टिकेगी नहीं।
।।श्री परमात्मने नम:।।

Wednesday 23 November 2016

ब्रह्म की प्राप्ति

जब मनुष्य सभी प्राणियों के प्रति मन, वचन तथा कर्म से पापमय भाव नहीं रखता है, तब वह ब्रह्म को प्राप्त होता है.
।।श्री परमात्मने नम:।।

Tuesday 22 November 2016

पाप का संचय

यदि मनुष्य पाप कर भी ले तो उसे पुन: न दोहराये, न उसे छुपाये और न उसमें रत  हो | पाप का संचय ही सब दु:खों का मूल है |

Monday 21 November 2016

निश्चयता

मैं आत्मा हूँ और परम पिता परमात्मा की अविनाशी सन्तान हूँ केवल यह निश्चय हो जाना ही पर्याप्त नहीं है इस निश्चय को आचरण में लाना जरूरी है।

Sunday 20 November 2016

व्यक्तित्व

व्‍यक्‍तित्‍व हमेशा तड़पता हुआ अतृप्‍त, हमेशा अधूरा और बेचैन रहता है। यह तड़पता हुआ व्‍यक्‍तित्‍व समाज में अनाचार पैदा करता है क्‍योंकि तड़पता हुआ व्‍यक्‍तित्‍व प्रेम को जब खोजने निकलता है तो उसे विवाह में प्रेम नहीं मिलता। वह विवाह के अतिरक्‍ति प्रेम को खोजने की कोशिश करता है।

Saturday 19 November 2016

आदर-अनादर

हम अपने जीवन में अपनी जानकारी का अनादर कर के अपार दु:ख भोगते हैं और यदि  उसका आदर करें तो विकास की चरम सीमा तक पहुंच सकते हैं ।
।।श्री परमात्मने नम:।।

Thursday 17 November 2016

अवहेलना का फल

झूठ के मायावी प्रपंचों में उलझ कर ईश्वर का राजकुमार-मनुष्य मानवता से पतित होकर पशु बन गया है। सत्य की अवहेलना करने का अभिशाप वह भुगत रहा है।
।।श्री परमात्मने नम:।।

सत्य की अवहेलना

झूठ के मायावी प्रपंचों में उलझ कर ईश्वर का राजकुमार-मनुष्य मानवता से पतित होकर पशु बन गया है। सत्य की अवहेलना करने का अभिशाप वह भुगत रहा है।
।।श्री परमात्मने नम:।।

Wednesday 16 November 2016

पिता

पिता एक ऐसा शब्द जिसके बिना किसी के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। एक ऐसा पवित्र रिश्ता जिसकी तुलना किसी और रिश्ते से नहीं हो सकती।
।।श्री परमात्मने नम:।।

Tuesday 15 November 2016

वेदना

बुद्ध के समय में जितनी वेदना बुद्ध ने झेली, समाज ने उनकी परवाह नहीं की। महावीर के कानों में कील ठोक दी गईं, उन्हें भूखो मरने के लिए विवश कर दिया गया, समाज ने उनके महत्त्व को आँका नहीं। आज उन्हें भगवान माना जा रहा है ।

Sunday 13 November 2016

ऋद्धि-सिद्धि

सनातन धर्म में माँ भगवती के विभिन्न रुप, विभिन्न शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऋद्धियां और सिद्धियां इन्हीं विभिन्न शक्तियों के रुप में अनुभव करने के माध्यम और साधन हैं। ऋद्धियां भक्ति से भी मिलना संभव है लेकिन सिद्धियां तप और ज्ञान के बिना मिलना संभव नहीं।

Saturday 12 November 2016

माया

स्त्री, पुत्र, पौत्रादि सभी परिजन दुःखपूर्ति के ही साधन हैं। इनमें सुख की कल्पना करना भ्रम मात्र है।
।।श्री परमात्मने नम:।।

Friday 11 November 2016

वास्तविकता

इस जगत में दुख वास्तविक है, सुख सिर्फ आभास है। जो चीज नहीं मिलती बस उसमें सुख है और जो मिल जाती है उसमें सब सुख खो जाता है इसलिए कोई भी आदमी कहीं भी सुखी नहीं है।
।।श्री परमात्मने नम:।।

Thursday 10 November 2016

गृहस्थ

जो जहाँ है वहीं दुखी है, ऐसे आदमी का नाम ही गृहस्थ है। वह हमेशा भविष्य में ही जी रहा है। कल उसका सुख है।
।।श्री परमात्मने नम:।।

Wednesday 9 November 2016

संस्कार

अहंकार खत्म होता है क्षमा मांगने से और संस्कार बनता है क्षमा करने से........

Tuesday 8 November 2016

वर्तमान

कल कभी आता नहीं। कल जब आएगा वह आज ही होगा। वह उस आज को फिर कल के लिए लगाएगा, ऐसे ही वह लगाता जाता है और एक दिन सिवाय मृत्यु के हाथ में कुछ भी नहीं आता।
।।श्री परमात्मने नम:।।

Monday 7 November 2016

संन्यासी

जो जहां है वहीं सुखी है, ऐसे आदमी का नाम ही संन्यासी है।
।।श्री परमात्मने नम:।।

Sunday 6 November 2016

नित्य-अनित्य

जो बाल बुद्धि वाले बाह्य भोगों का अनुसरण करते हैं वे सर्वत्र फैले हुए मृत्यु के बंधन में पड़ते हैं किंतु बुद्धिमान मनुष्य नित्य अमरपद को विवेक द्वारा जानकर इस जगत में अनित्य भोगों में से किसी को भी नहीं चाहते।
।।श्री परमात्मने नम:।।

Saturday 5 November 2016

भूल

हे आदि शक्ति माँ! हमारी भूल से जो-जो अपराध हमसे हुए हों उनको क्षमा करो, हमारे विचार शुद्ध करो और उनमें शक्ति दो, हम तेरी शरण आये हैं। हम आपकी आज्ञाओं का पालन नहीं कर सकते, इसमें केवल इतना अपराध है कि हमने तेरा सहारा नहीं लिया, अबतक अपने ही बल भरोसे पर कूदते रहे और इसीलिए हमारी यह दशा हो रही है। हमने तेरे महत्त्व को नहीं जान पाया। हम अभीतक यही समझते रहे कि मनुष्य अपने उद्योग से भी कुछ कर सकता है।

Friday 4 November 2016

विवेक

विवेक का अर्थ इतना ही है कि जो निरर्थक है, वह हमें निरर्थक दिखाई पड़ जाए; जो सार्थक है, वह सार्थक दिखाई पड़ जाए।
।।श्री परमात्मने नम:।।

Thursday 3 November 2016

बंधन और मुक्ति

अविद्या के कारण ही जीव और ब्रह्म में भेद बुद्धि की प्रतीति होती है। अविद्या, विद्या अर्थात ब्रह्म ज्ञान से शान्त होती है। यह देह मेरी है, यही बन्धन है और यह देह मेरी नहीं है, यही मुक्ति है।
।।श्री परमात्मने नम:।।

Wednesday 2 November 2016

पितृ-ऋण

शास्त्र के अनुसार, यदि पिता प्रसन्न हैं तो पुत्र के सब पापों का प्रायश्चित हो जाता है। पितृ ऋण तो हम नहीं चुका सकते पर अपने पिता-  माता को सम्मान अवश्य दें जिसके कि वो हकदार हैं।
।।श्री परमात्मने नम:।।

Tuesday 1 November 2016

सर्वत्र सत्य

ईश्वर सत्य है, आत्मा सत्य है, प्रभु की त्रिगुणमयी लीला सत्य है, सर्वत्र सत्य ही सत्य व्याप्त हो रहा है। जीवन के कण-कण की एक ही प्यास है-'सत्य’।
।।श्री परमात्मने नम:।।