Monday 8 January 2018

समाधान क्यों नहीं?

प्रणाम सर जी!
किसी भी प्रकार के बुराइयों की सूचना तो दी जा सकती हैं परंतु अक्सर देखा गया है कि सूचक का नाम शिकायत-कर्त्ता के रूप में सार्वजनिक हो जाता है और बेचारा लोगों की नजरों से गिर जाता है फिर उसे खामियाजा भी भुगतना पड़ता है। जाहिर है कि कोई भी व्यक्ति शिकायत करने से डरता है। वास्तव में यदि शिकायत-कर्त्ता का नाम गुप्त रखा जाय और शिकायतों का निराकरण किया जाय तो हमारे समाज में बुराइयों का खात्मा सुनिश्चित है। बाल-विवाह क्या? शौचालय निर्माण में घोटाला क्या? शराब का धंधा क्या? दहेज लेना और देना क्या? इन सबों की जानकारी प्राय: लोगों को ज्ञात रहती है लेकिन उसके समाधान के लिए किसको पड़ी है। पुलिस को पता नहीं है कि शराब कहाँ चुलाई जाती है? हाँ जब ज्यादा दबाव पुलिस पर पड़ती है तभी वह सुगबुगाती है। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि जबतक बिहार में पुलिस-प्रशासन चुस्त-दुरुस्त नहीं होगी तबतक सामाजिक बुराइयों का अंत असंभव है। मैं यह भी जानता हूँ कि फेसबुक पर ऐसी पोस्टिंग करके बेकार की मगजमारी करता हूँ। कुछ होना-जाना तो है नहीं ? फिर भी फेसबुक मित्रों की मांग को देखते हुए ऐसा करना पड़ता है। हम तो फेसबुक पर पोस्ट करना भी छोड़ दिए थे क्योंकि इससे कुछ होता नहीं है। मैंने कल पीएमओ को ऑनलाइन शिकायत की है। ई-मेल भी किया हूँ। संप्रति हिंदुस्तान में केवल और केवल राजनेताओं को प्रशंसा चाहिए उन्हें शिकायतों के समाधान से कोई मतलब नहीं है। धन्य हो ऐसे लोकतांत्रिक प्रणाली का....!  विशेष अगले कड़ी में--->
।। श्री परमात्मने नमः।।

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