आर्यावर्त २६ जनवरी १९८१ में प्रकाशित
* किरण भर दो *
" पोद्दार रामावतार अरुण "
तुम मेरे मुरझाये मन में
फिर से आनंद-किरण भर दो !
पर-कटी चिड़ैया-सी मेरी
आकुल-व्याकुल जीवित आशा
दु:ख की ज्वाला से झुलस गयी
रसमय मेरी अपनी भाषा
तुम मेरे जर्जर जीवन में
फिर से नूतन जीवन भर दो ?
कोयल कोई भी नहीं कहीं
जो मेरे पतझड़ में कूके
मर्मस्थल में जो व्यथा छिपी
वह कौन कि जो देखे छूके
तुम मेरी नंगी डालों में
फिर से दो-चार सुमन भर दो !
प्राणों में पीड़ा-ही-पीड़ा
हर क्षण अंगार उगलती है
मन के कोने में किंतु अभी
दीपिका प्रेम की जलती है
तुम मेरी मूर्छित साँसों में
फिर से स्वच्छंद झनन भर दो !
Friday 5 January 2018
किरण
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