Friday 5 January 2018

किरण

आर्यावर्त २६ जनवरी १९८१ में प्रकाशित
              * किरण भर दो *
         " पोद्दार रामावतार अरुण "
तुम मेरे मुरझाये मन में
फिर से आनंद-किरण भर दो !
          पर-कटी चिड़ैया-सी मेरी
          आकुल-व्याकुल जीवित आशा
          दु:ख की ज्वाला से झुलस गयी
          रसमय मेरी अपनी भाषा
तुम मेरे जर्जर जीवन में
फिर से नूतन जीवन भर दो ?
           कोयल कोई भी नहीं कहीं
           जो मेरे पतझड़ में कूके
           मर्मस्थल में जो व्यथा छिपी
           वह कौन कि जो देखे छूके
तुम मेरी नंगी डालों में
फिर से दो-चार सुमन भर दो !
            प्राणों में पीड़ा-ही-पीड़ा
            हर क्षण अंगार उगलती है
            मन के कोने में किंतु अभी
            दीपिका प्रेम की जलती है
तुम मेरी मूर्छित साँसों में
फिर से स्वच्छंद झनन भर दो !

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