Wednesday 17 January 2018

आत्म-स्वरूप

सर्वशक्तिमान आप हैं परन्तु अपने-आप को विस्मरण कर चुके हैं। हम आनंद की खोज में भटक चुके हैं। ऊपर से नीचे गिर गए हैं। पुनः नीचे से ऊपर उठने की प्रक्रिया को ही आत्म-दर्शन कहा गया है। इसीलिए पुन: अपने स्वरुप की प्राप्ति हेतु हमें सांसारिक रुप में अवस्थित होना पड़ा। मानव-तन की प्राप्ति इसी हेतु हुई है। इसबार भी सांसारिक-पथ पर अगर हम मार्ग भूल जाएं तो समझिए हमारा सर्वनाश सुनिश्चित है लेकिन कोई अगर भक्ति और प्रेम के पथ में भटक जाए तो कल्याण ही हो जाए..! अब प्रश्र उठता है कि भक्ति और प्रेम है क्या ? बस सम्यक भाव से कर्त्तव्यों का निर्वहन ही भक्ति और प्रेम है। कहा भी गया है कि कर्म किए जा फल की चिंता मत कर ऐ इंसान, जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान...! भगवान को खोजने मत जाइए, कहाँ खोजिएगा भगवान को ? हमसबों को तो कुछ अता-पता भी नहीं है परंतु हमें सदैव नैतिकता पूर्ण अपने कर्त्तव्य-पथ पर अग्रसर रहना चाहिए। हमें तो भगवान की प्रतीक्षा न कर केवल अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करते रहना चाहिए। वो तो खुद खोजते-खोजते हमारे द्वार पर आकर खड़े हो जायेंगे। जैसे शबरी को खोजते-खोजते भगवान स्वयं उसके कुटिया पर आ गए थे।
।। श्री परमात्मने नमः।।

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