२६ जनवरी १९८१ "आर्यावर्त"
* लोकतंत्र-परलोकतंत्र *
(श्री रामदयाल पांडेय)
अनुस्यूत परलोकतंत्र से
क्यों न देशका लोकतंत्र हो ?
क्या इहलोक-भोग तक सीमित
दृष्टि कभी होती विशाल है ?
क्या हिमगिरिके तुंग शिखर तक
ही सीमित गति-प्रगति-भाल है ?
दमित-विजित जो हो न सकेगा,
रिपु क्या ऐसा भी कराल है ?
क्या दिक्काल करेंगे शासित ?
कालजयी भारत मराल है ;
तभी स्वस्थ है लोकतंत्र, जब
मानवका चिंतन स्वतंत्र हो।
अहित किसीका कभी काम्य क्या ?
सदा सर्वहित ही मनुजोचित ;
प्रेय श्रेयसे अनुस्यूत हो,
यही उभय लोकों में वांछित ;
और, सदा परमार्थ निहित ही
स्वार्थ काम्य हो सकता है नित ;
सीमित शक्ति सदा सत्ताकी,
पर, आत्माकी शक्ति असीमित ;
सदा लोकहित और लोकसुख
लोकतंत्रका मूल मंत्र हो।
नोट:--> तुलनात्मक अध्ययन की आवश्यकता है तब में और अब में ....!
Wednesday 3 January 2018
तुलनात्मक
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