Sunday 21 January 2018

विनती

जाड़े के मौसम में अपराधों की बाढ़ आई है,
राम-राज्य की बातें अब क्यों नहीं देती सुनाई है?
बदली नहीं खबरें अख़बारों में हाहाकार जारी है,
जड़ें भी हिल नहीं पाई गुंडों की व्यापार जारी है।
रौशनी की उम्मीदों में चिराग उम्मीदों का जलाया है,
है अमावस की रात बाक़ी अभी अंधेरा का साया है।
ये फिंजां ये बहारें बदलने का समय नहीं हो रहा साकार,
हे राधे-कृष्ण! सुनो विनती फिर से आ जाओ एकबार!
।। श्री परमात्मने नमः।।

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