सहमी-सहमी बालाओं को राहत चलो दिलायें
जिनकी व्यथा-कथा से सहमा शहर, गाँव, घर-द्वार,
बालाएं चीत्कार कर रहीं मनचले आज हावी होते
अब न जाने कब न्याय मिले ? मुकदमों का अंबार,
इज्जत को ले कुछ अभिभावक रह जाते हैं मौन
गौतम की है तपोभूमि, है बुद्ध का यही बिहार,
मानव का खोया संस्कार है आज हमें लौटाना
कर देना है तार-तार बालाओं पर जो करता है वार,
स्वर्णिम बिहार के सपने को अब करना है साकार
तीव्रगति से ध्यान हो केंद्रित इसकी है दरकार ।
~दिवाकर प्रसाद,
गोपालबाद, नालंदा
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