Tuesday 19 June 2018

समर्पण

जिसकी समझ में सबकुछ भगवान का है फिर उसका तो अपना एकमात्र भगवान के सिवा और कुछ भी नहीं रहा और उसकी कोई प्रवृत्ति भी भगवान की सेवा से भिन्न कैसे हो सकती है? वास्तव में इसी का नाम समर्पण है!
।। श्री परमात्मने नमः।।

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