जिसकी समझ में सबकुछ भगवान का है फिर उसका तो अपना एकमात्र भगवान के सिवा और कुछ भी नहीं रहा और उसकी कोई प्रवृत्ति भी भगवान की सेवा से भिन्न कैसे हो सकती है? वास्तव में इसी का नाम समर्पण है! ।। श्री परमात्मने नमः।।
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