Tuesday 12 June 2018

विद्या

परदेश में मनुष्य के लिए विद्या ही मित्र है! परिवार में आज्ञाकारिणी पत्नी मित्र है! रोग होने पर दवा मित्र है और मरने वाले के लिए एकमात्र धर्म ही मित्र है! दूसरों के साथ वही व्यवहार करना चाहिए जो स्वयं हम चाहते हैं! हमें किसी के साथ भी झूठ व्यवहार नहीं करना चाहिए क्योंकि हम दूसरे का झूठ बोलना पसंद नहीं करते हैं! अतः हम कह सकते हैं कि कोई मनुष्य त्रिभुवन का स्वामी रहकर भी दुःखी रह सकता है और दरिद्र से दरिद्र भी विश्व का सबसे सुखी प्राणी हो सकता है!
।। श्री परमात्मने नमः।।

No comments:

Post a Comment