Wednesday 1 November 2017

सुख की तलाश

एक आदमी भोग में पड़ा है वह धन इकट्ठा करता है और सुंदर स्त्री की तलाश करता है। एक स्त्री सुंदर पुरुष को खोजती है। आदमी बड़ा मकान बनाता है। उससे पूछिए वह बड़ा मकान क्यों बना रहा है? वह कहता है, इससे सुख मिलेगा। दूसरा आदमी सुंदर मकान छोड़ देता है पत्नी को छोड़ कर चला जाता है। घर-द्वार से अलग हो जाता है। नग्न भटकने लगता है। संन्यासी हो जाता है। उससे पूछिए तुम यह सब क्यों कर रहे हो? वह कहेगा, इससे सुख मिलेगा। दोनों की आकांक्षा सुख की ही है और दोनों मानते हैं कि सुख को पाने के लिए कुछ किया जा सकता है। यही भ्रांति है। सुख स्वभाव है। उसे पाने के लिए मनुष्य जब तक कुछ करेगा तब तक उसे खोता रहेगा। पाने की चेष्टा में ही उसे गंवाया है। संसारी एक तरह से गंवाता है और त्यागी दूसरी तरह से गंवाता है। दोनों किस भांति गंवाता है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
।। श्री परमात्मने नमः।।

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