Saturday 4 November 2017

चोरी का पत्थर

नमस्कार!
मैं भले ही पत्थर का टुकड़ा हूँ पर थोड़ा-सा स्वार्थ को लेकर मानव मुझे पाने के लिए विद्या-मंदिर के ताले को तोड़कर मुझे चुरा लेता है। मुझे अफसोस इस बात की है कि अभीतक उस चोर ने मुझे लावारिस सड़क पर छोड़ रक्खा है। उस चोर से मेरी गुजारिश है कि मुझे जिस काम के लिए चुराकर लाया गया है, कृपया उस काम में यथास्थान शीघ्रातिशीघ्र स्थापित कर दे क्योंकि अब मुझसे असहनीय दर्द सहा नहीं जा रहा है वह यह कि सड़क पर दौड़ रहे वाहनों से मैं बुरी तरह कुचला जा रहा हूँ। शायद वह चोर डरकर मुझे सड़क पर लावारिस रूप में छोड़ दिया हो पर यह उसकी भूल है। मैं जानता हूँ कि वर्तमान में उस चोर को पकड़ने वाला कोई नहीं है क्योंकि पंचायत के सारे जनप्रतिनिधियों का ध्यान इस ओर नहीं है। वे स्वयं उधेड़बुन में हैं कि किस तरह जनता और सरकार को चूना लगाया जाय। मैं तो प्रशासन और सरकार के लिए भी एक चुनौती के रूप में यहाँ पड़ा हूँ। यथास्थान स्थापित होने के इंतजार में....!
निरंकार से भी मेरी प्रार्थना है कि हे प्रभु! आप उस चोर का साथ क्यों दे रहे हैं? क्या आपको भी उस चोर से डर है? सुनते हैं कि आप निर्लिप्त हैं तो फिर चोरों के साथ लिप्त कैसे हो गए?
।। श्री परमात्मने नमः।।

No comments:

Post a Comment