आदमी मरते-मरते दमतक यानि आखिरी क्षण तक भी जब मौत द्वार पर दस्तक दे रही हो तबतक भी कामवासना से पीड़ित होता है और साधारण आदमी नहीं बल्कि परम अद्वैत में आश्रय किया हुआ! जो परम अद्वैत में अपनी आस्था की घोषणा कर चुका है और मोक्ष के लिए उद्यत हुआ भी। वह जो कहता है हम मोक्ष की तरफ प्रयाण कर रहे हैं वह भी! पुरुष काम के वश होकर क्रीड़ा के अभ्यास से व्याकुल होता है, यही आश्चर्य है।
।। श्री परमात्मने नमः।।
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