भीतर विष लेकिन बाहर से हाथ मिलाकर हँसते लोग
आँखों में लेकर मिलते हैं नफरत के गुलदस्ते लोग
औरों के गुण-दोष हमेशा छलनी में से छान रहे
पर अपने गुण-दोष कसौटी पर जा कभी न कसते लोग
शीतल जल से भरी घटा तू कब बरसेगी धरती पर
जेठ-दुपहरी से झुलसाए जल को आज तरसते लोग
कहने को तो लाखों में भी बिकने को तैयार नहीं
अवसर मिलने पर बिक जाते कौड़ी से भी सस्ते लोग
रूप सुरक्षित रह सकता तो पर्दे में रह सकता है
जब भी रूप उठाये पर्दा बनकर तीर बरसते लोग
जाने-पहचाने चेहरे भी अनजाने से लगते हैं
दिन का उजियाला है फिर भी अंधकार में बसते लोग
सूरज चढ़ता है तो मुख पर और मुखौटे होते हैं
सूरज छिपता है तो मुख पर और मुखौटे कसते लोग
पहले तो 'दिवाकर' तुम्हारी 'हाँ' में 'हाँ' सब कहते थे
अब क्यों तुमको छोड़ चले हैं अपने-अपने रस्ते लोग
Tuesday 8 August 2017
नफरत
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