Saturday 12 August 2017

युद्ध

कितने युद्ध अभी लड़ने हैं, साँझ उतरती आती है
अस्पताल-रवि, देख कि घायल पीठ नहीं यह छाती है
करे न जो समझौता दुनिया पागल उसको कहती है
क्या बतलाऊँ, पागलपन की मस्ती कितनी भाती है
कहते दुनिया स्वर्ग बनी है, नहीं शत्रुता शत्रु कहीं
आज शत्रुता मित्र-मुखौटा पहन खड़ी मुस्काती है
महानगर का सभ्य जगत यह जंगल अजब निराला है
धन-सत्ता के बल पर बकरी भी शेरों को खाती है
गलत बात यह भौतिक सुख से प्रेम-प्रीति का मेल नहीं
अब सोने के पिंजरे में ही चिड़िया बढ़िया गाती है
।। श्री परमात्मने नमः।।

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