जिंदगी पर किस तरह से तीर बरसाते हैं लोग
जान तक पाते नहीं कब क़त्ल कर जाते हैं लोग
है अकेली सम्अ ये जलती रही जो रात भर
फिर क्यों तूफानी हवा बनकर यहाँ आते हैं लोग
अश्क की बरसात है रुकती नहीं जो एक पल
मुट्ठियों में रेत भरकर क्यों ये मुस्काते हैं लोग
हैं कहाँ ऐसे मसीहा ज़हर ग़म का बाँट लें
देखकर ग़मगीन चेहरे बुत-से बन जाते हैं लोग
है यहाँ इंसान की जो कद्र तुमसे क्या कहें
लाश पर मर्दानगी से तीर बरसाते हैं लोग
।। श्री परमात्मने नमः।।
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