Friday 11 August 2017

कद्र

जिंदगी पर किस तरह से तीर बरसाते हैं लोग
जान तक पाते नहीं कब क़त्ल कर जाते हैं लोग
है अकेली सम्अ ये जलती रही जो रात भर
फिर क्यों तूफानी हवा बनकर यहाँ आते हैं लोग
अश्क की बरसात है रुकती नहीं जो एक पल
मुट्ठियों में रेत भरकर क्यों ये मुस्काते हैं लोग
हैं कहाँ ऐसे मसीहा ज़हर ग़म का बाँट लें
देखकर ग़मगीन चेहरे बुत-से बन जाते हैं लोग
है यहाँ इंसान की जो कद्र तुमसे क्या कहें
लाश पर मर्दानगी से तीर बरसाते हैं लोग
।। श्री परमात्मने नमः।।

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