Monday 30 October 2017

परदोष

दूसरेके दोषोंका न प्रचार करो, न चर्चा करो और न उन्हें याद ही करो । तुम्हारा इसीमें परम लाभ है । भगवान् सर्वान्तर्यामी हैं, वे किसने किस परिस्थितिमें, किस नियतसे कब क्या किया है, सब जानते हैं, और वे ही उसके फलका भी विधान करते हैं । ‘तुम बीचमें पड़कर अपनी बुद्धिका दिवाला क्यों निकालने जाते हो, और झूठी-सच्ची कल्पना करके दोषोंको ही बटोरते हो ?’
(‘कल्याण’ पत्रिका;  वर्ष – ७८, संख्या – ११ : गीताप्रेस, गोरखपुर)

No comments:

Post a Comment