Tuesday 26 September 2017

कश्ती

समा जाते हैं लोग दिल में ऐतबार बनकर,
फिर लूट लेते हैं ख़ज़ाना पहरेदार बनकर।

यकीं करता है इन्सान जिन पे हद से ज्यादा,
डुबो देते हैं वो ही कश्ती मझधार बनकर।

रिश्तों की अहमियत खूब समझती है दुनिया,
पर लालच आ जाती है बीच में दीवार बनकर।

दौरे-मुश्किल में वसूलों पे चलते हैं बहुत लोग,
पर भुला देते हैं वसूलों को मालदार बनकर।

झूठ बिक जाती है पलभर में हजारों के बीच,
सच रह जाता है तन्हा गुनाहगार बनकर।

।। श्री परमात्मने नमः। ।

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