*होता जीवन का उद्धार*
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मन का मिटता अहंकार जब,
तब आता है सत्य विचार।
छोड़ के अपने मनमत को हम
करलें हर मानव से प्यार।।
जीवन का कुछ नहीं भरोसा
व्यर्थ करें हम क्यों तकरार।
जबतक जीना प्यार से जीना
सुंदर कर लें हम व्यवहार।।
वैर विरोध को छोड़ के सारे
करलें हर मानव से प्यार।
राजा-रंक दीन दु:खियों के
लिए खुला है यह दरबार।।
ईश्वर सत्गुरु दोनों एक
जब आता है सत्य विचार।
सत्गुरु कृपा बरसती सबपर
होता जीवन का उद्धार।।
।।श्री परमात्मने नमः।।
रचयिता-> दिवाकर प्रसाद
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