एक चंदन अकेला खड़ा रहता वन में शीतल सुगंध बिखेरता हुआ सा तन से। भुजंगों के विष को भी सहता जतन से फिर भी सौरभ महकाता कितने जतन से। ।। श्री परमात्मने नमः।।
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