न जाने कितने जन्मों से हम एक से बढ़कर एक करोड़ों भयानक कर्म संचित करते आए हैं और उन संचित कर्मों में से न जाने कितने भोगने बाकी हैं। न जाने कौन-कौन से कष्ट और आने बाकी हैं? आखिर भगवान के दरबार हम केवल मांगने ही क्यों जाते हैं? तभी तो भगवान ने हमें ताना दिया!
।। श्री परमात्मने नमः।।
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