अविद्या के कारण ही जीव और ब्रह्म में भेद बुद्धि की प्रतीति होती है। अविद्या, विद्या अर्थात ब्रह्म ज्ञान से शान्त होती है। यह देह मेरी है, यही बन्धन है और यह देह मेरी नहीं है, यही मुक्ति है। ।।श्री परमात्मने नम:।।
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