सेवक में दैन्य नहीं तो वह सेवक नहीं हो सकता।माता के दरबार में दीनता ही ले पहुँचती है। दीनता है तो हल्की-सी डोर भी माता को मजबूती से बांधती है। ।। श्री परमात्मने नमः।।
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