Saturday 29 December 2018

शाश्वत सुख

यह दुकान सदैव नहीं रहेगा और न यह सच्चा सुख देगा! देखिए न यहाँ एक और दुकान पहले भी था जो अब नहीं है! यदि पहले दुकानदार को सुख मिलता तो वह सुख और बढ़ जाता! जो एक क्षण में सुख मिला था तो दस क्षण में और दस गुना हो जाता लेकिन एक क्षण में सुख लगा था और दस क्षण में फाँसी मालूम होने लगी! सुख नहीं था, कल्पित था जो एक क्षण में खो गया! जो कल्पित है वह क्षण भर के लिए टिकता है और जो सत्य है वह सदा है! जो कल्पित है वही क्षणभंगुर है और जो क्षणभंगुर है उसे कल्पित जानना चाहिए क्योंकि जो है वह शाश्वत है, वह सदा है! वह क्षण में नहीं है! वह नित्य है! वह कभी मिटता ही नहीं! वह है और है और है! वह था और होगा और होगा! कभी ऐसा क्षण नहीं आएगा  जब वह नहीं होगा! जो सुख, दु:ख में बदल जाता है उसे कल्पित जानना चाहिए! वह सुख था ही नहीं और हम जिस सुख को जानते हैं वह दु:ख में बदलने में समर्थ है!
।। श्री परमात्मने नमः।।

No comments:

Post a Comment