अपनी भौतिक और परिवर्तनशील स्थिति पर गर्व करना, अपने भीतर अहंकार का मार्ग खोलना होता है और इसी मार्ग से अशक्ति और वासनाएं आती हैं तथा दीमक की भांति विश्व विजेताओं तक को खोखला कर जाती हैं! ।। श्री परमात्मने नमः।।
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