हमारा मस्तिष्क रचनात्मक माध्यम है इसलिए हम दूसरों के बारे में जो सोचते और महसूस करते हैं उसे अपने खुद के अनुभव में ला रहे हैं! यही स्वर्णिम नियम का मनोवैज्ञानिक अर्थ है! जैसा हम चाहते हैं कि दूसरे हमारे बारे में सोचे ठीक उसीतरह हम भी उनके बारे में सोचें!
।। श्री परमात्मने नमः।।
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