माया बहुत प्रबल है। हर कोई इसका सामना नहीं कर पाता। कोई दो तो कोई तीन तक, कोई चार बस इसके आगे उसका धैर्य समाप्त। हर मनुष्य के अंदर जहाँ कुछ विशेषता होती है वही कुछ कमजोरी उसके बंधन का कारण बनती है। मन ही बंधन का कारण है। 🌹श्री परमात्मने नमः🌹
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